"क्या देख रही हो?"
उन दिनों मैं साल 1966 की बात कर रहा हूँ।तब कालेज आज की तरह जगह जगह नही हुआ करते थे।मेरे पिता रेलवे में थे और उनके ट्रांसफर होते रहते थे।इसलिए मेरी शिक्षा टुकड़ो में हुई।जामनगर, राजकोट,बांदीकुई, अछनेरा और ब्यावर के बाद मैने हायर सेकंडरी की परीक्षा आबूरोड से पास की थी।तब मेरे पिता आबूरोड में इनेपेक्टर थे।आबूरोड के पास फालना और सिरोही में कालेज थे और फिर जोधपुर में।आगे की पढ़ाई के लिए मैने सन 1966 में जोधपुर यूनिवर्सिटी में एड्मिसन ले लिया।पहली बार घर से निकलना था।पिताजी ने एक सिपाही श्याम सिंह को मेरे साथ भेजा था।-उसने मुझे एड्मिसन दिलाया और हाई कोर्ट रोड़ पर मुरलीधर जोशी भवन में किराए पर कमरा दिलाया था।वही नीचे फ़ोटो ग्राफर का स्टूडियो था और दूसरी मंजिल से कोई पत्रिका निकलती थी।नाम अब ध्यान नही है।तीसरी मंजिल पर कई कमरे थे।जिनमें स्टूडेंट रहते थे।कुछ नाम याद है।मकराना का असलम और नागौर के शिव चंद जोशी और रामप्रकाश थे।बाकी नाम याद नही।
जोधपुर यूनिवर्सिटी फैकल्टी में बंटी हुई थी।लॉ,साइंस,कॉमर्स आदि और लड़कियों का कमला नेहरू जो दूर था।उन दिनों साइंस की पढ़ाई अंग्रेजी में होती थी।हिंदी में किताबे नही आयी थी।उन दिनों हिंदी के समर्थन में आंदोलन चल रहे थे।
यहाँ एक घटना का जिक्र जरूर करूँगा।छात्र राजनीति हावी थी।दो विभिन्न गुटों का वर्चस्व था।वी वी जॉन राजस्थान शिक्षा बोर्ड के सचिव रहे थे।उन्हें जोधपुर यूनिवर्सिटी का वाईस चांसलर बनाया गया था।काले रंग के छोटे कद के दुबले व्यक्ति थे।उन्होंने आने के बाद साइंस के छात्रों के साथ परिचय रखा था।वह हिंदी नही जानते थे।इस बात का पता शायद छात्र नेता को पहले ही था।इसलिए वे पहले ही हाल में आकर बैठ गये थे।जैसे ही वी वी जॉन अपनी बात कहने लगे।छात्र नेता ने कहा,"हिंदी में बोलो।"
"मैं हिंदी नही जानता।लेकिन मैं वादा करता हूँ।जल्दी हिंदी सीख लूंगा।"
पर छात्र नेता का उद्देश्य तो राजनीति करना था।हुड़दंग चालू हो गया सारे छात्र बाहर निकल आये।कुछ छात्रों ने पत्थर बाजी शुरू कर दी।खिड़की दरवाजो के ऊपर पत्थर फेंके जाने लगे।कुछ प्रोफ़ेसर रोकने का प्रयास करते रहे।वी वी जॉन एक पिलर के पास खड़े होकर देखते रहे।ज्यादा बवाल होने पर छुट्टी घोसित कर दी गयी।कई दिनों तक यूनिवर्सिटी बन्द रही।
छात्र नेता को नोटिस दिया गया कि साइंस के छात्रों के साथ परिचय होना था लेकिन छात्र नेता लॉ के स्टूडेंट है।और आखिर में छात्र नेता ने लिखित में माफी मांगी जिसे नोटिस बोर्ड पर लगा दिया गया।
यहाँ पर कुछ लेजचरार का जिक्र जरूर करूँगा।
अंग्रेजी हमे अमर सिंह पढ़ाते थे।छोटे कद के दुबले पतले और अपने साथ पोपट लाल की तरह छाता रखते थे।जैसा कालेज में होता था।क्लास में चालीस से ज्यादा छात्र थे।लेकिन उनकी क्लास में 12 या15 ही आते।वह कहा करते थे,"जब छात्रों को पढ़ाई की चिंता नही तो मैं क्या कर सकता हूं।"
एक थे शाह।ये हमे मैथ पढ़ाते थे।टिप टॉप रहते और धूप का चश्मा लगाते थे।इनकी क्लास में लड़के तो काफी संख्या में मौजूद रहते पर उन के वश में नही थे।वह पढ़ाते और लड़के बाते करते रहते।वह बार बार टोकते पर इसका कोई असर न होता।अन्य लेक्चरर कि कोई ऐसी बात न थी